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India-China Face-Off: भारत-चीन आमना-सामना: दक्षिण चीन सागर में चीनी नौसेना ने भारतीय युद्धपोत का पीछा किया

India-China Face-Off: दक्षिण चीन सागर में चीनी नौसेना की आक्रामक गतिविधियों से अक्सर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को खामियाजा भुगतना पड़ता है, और हाल ही में एक और घटना ने भारत-चीन संबंधों को सुर्खियों में ला दिया है। भारतीय युद्धपोत, जो जापान से एक सद्भावना यात्रा के बाद लौट रहा था, को चीनी नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में पीछा किया। इस घटना के दौरान भारतीय युद्धपोत जब स्कैर्बोरो शोल के पश्चिमी हिस्से से गुजर रहा था, तब चीनी युद्धपोत CCG 3304 ने इसका पीछा किया। यह घटना उस समय घटित हुई जब चीन की एक और विशाल कोस्ट गार्ड जहाज, CCG 5901, फिलीपींस के जल क्षेत्र में घुसकर डेरा डाले हुए थी।

चीन की बढ़ती ताकत: दक्षिण चीन सागर में स्थिति की गंभीरता

चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत में भारी वृद्धि की है, जिसका उद्देश्य फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों को धमकाना है। चीनी कोस्ट गार्ड के पास वर्तमान में 1275 से अधिक युद्धपोत हैं, और इनमें से 225 जहाज 500 टन से अधिक वजन वाले हैं जो समुद्र में दूर तक ऑपरेट करने में सक्षम हैं। चीन के पास दुनिया के दो सबसे बड़े कोस्ट गार्ड जहाज भी हैं, जिनका वजन 10,000 टन तक होता है। इस बार, हालांकि, चीन ने भारतीय युद्धपोत का पीछा किया है, और इसके लिए चीन को भविष्य में संभावित परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

चीन के विशाल कोस्ट गार्ड जहाज

चीनी कोस्ट गार्ड के ज़हाटौ सीरीज के पेट्रोल जहाज को दुनिया का सबसे बड़ा कोस्ट गार्ड जहाज माना जाता है, जो यूएस नौसेना के अरली बर्क सीरीज के विध्वंसक युद्धपोत से भी बड़ा है। चीन इस जहाज का इस्तेमाल अपने विरोधियों के जल क्षेत्रों में घुसपैठ करने और दबाव बनाने के लिए करता है। चीन के पास लगभग हर देश के साथ सीमा विवाद है जो चीन सागर में स्थित हैं, यही कारण है कि वह लगातार अपने कोस्ट गार्ड की ताकत बढ़ाता रहता है, ताकि उन पर दबाव डाला जा सके। 2013 में चीन ने पांच नागरिक समुद्री एजेंसियों को मिलाकर चीनी कोस्ट गार्ड (Maritime Law Enforcement) का गठन किया।

भारत का बढ़ता प्रभाव: दक्षिण चीन सागर में भूमिका

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भारत भी दक्षिण चीन सागर में एक सक्रिय खिलाड़ी बन चुका है। फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की आपूर्ति करने के बाद, भारत अब इंडोनेशिया और वियतनाम को एंटी-शिप क्रूज मिसाइल निर्यात करने के सौदे को अंतिम रूप देने पर विचार कर रहा है। जून 2023 में, वियतनाम वह पहला देश बना जिसने भारत से पूरी तरह से ऑपरेशनल लाइट मिसाइल फ्रिगेट प्राप्त किया। चीन भारत के दक्षिण चीन सागर में प्रवेश को लेकर चिंतित है, क्योंकि फिलीपींस और बीजिंग के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है।

India-China Face-Off: भारत-चीन आमना-सामना: दक्षिण चीन सागर में चीनी नौसेना ने भारतीय युद्धपोत का पीछा किया

भारत-चीन टकराव: दक्षिण चीन सागर के महत्व का विश्लेषण

दक्षिण चीन सागर रणनीतिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण जलक्षेत्र है, जहाँ से वैश्विक व्यापार के मार्ग गुजरते हैं। इसमें प्राकृतिक संसाधनों की भी प्रचुरता है, जैसे कि तेल और गैस के भंडार, जो विभिन्न देशों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। चीन ने इस क्षेत्र में अपनी संप्रभुता का दावा किया है, जिसके कारण इसे लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है।

भारत, जो एक प्रमुख समुद्री शक्ति है, दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर क्षेत्रीय सुरक्षा और सामरिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास कर रहा है। भारत की यह भूमिका खासतौर पर चीन की बढ़ती समुद्री ताकत के खिलाफ एक संतुलन के रूप में उभर रही है।

चीन के समुद्री विस्तार का वैश्विक प्रभाव

चीन की बढ़ती समुद्री ताकत केवल दक्षिण चीन सागर तक सीमित नहीं है। चीन अपनी नौसैनिक ताकत को हिंद महासागर और अन्य वैश्विक समुद्री मार्गों में भी बढ़ा रहा है, जो भारत के लिए एक बड़ा चुनौती हो सकती है। यह चीन की समुद्री नीति का हिस्सा है, जिसे “मेड-इन चाइना 2025” और “वन बेल्ट, वन रोड” जैसी योजनाओं के तहत बढ़ावा दिया जा रहा है।

भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी समुद्री ताकत को और बढ़ाए और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस क्षेत्र में सामरिक संतुलन बनाए रखे। भारत और अन्य देशों के बीच मजबूत समुद्री गठबंधन दक्षिण चीन सागर के विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है।

भारत-चीन टकराव को लेकर यह घटना एक चेतावनी के रूप में सामने आई है कि दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव के बावजूद भारत को अपनी समुद्री शक्ति में वृद्धि करने की आवश्यकता है। भारत को अपनी सामरिक योजनाओं को सुदृढ़ करते हुए चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना होगा। इस क्षेत्र में भारत के योगदान को बढ़ाने और मजबूत करने की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं, जो भविष्य में क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

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